हृदय रोग (Heart Disease)

हृदय रोग (Heart Disease) के प्रकार: लक्षण, कारण, उपचार और आहार।

हृदय को 24 घंटे जीवनपर्यंत काम करना होता है। वह यह काम सुविधापूर्वक तथा शांत भाव से कर सके, इसका एक ही उपाय है कि रक्त शुद्ध हो और ले जाने तथा वापस लाने वाला मार्ग अर्थात् धमनियों तथा शिराओं को साफ रखा जाए।

हृदय अपना यह काम पूरी जिम्मेदारी से निभाता रहे, इसके लिए उसकी शक्तिशाली मांसपेशियों को ईंधन की आवश्यकता होती है। यह ईंधन उस तक पहुंचाती है, पेंसिल के आकार की दो मुख्य कारोनरी धमनियां और उनसे निकली हुई बहुत-सी छोटी-बड़ी शाखाएं। वे ही हृदय का जीवन हैं। उनसे ही उसे ऑक्सीजन और ग्लूकोज रूपी ईंधन मिलता है। आम तौर पर कारोनरी धमनियां हृदय की आवश्यकताओं का पूरा-पूरा ध्यान रखती हैं। जब-जब हृदय को अधिक काम करना पड़ता है, (जैसे-अधिक मानसिक दबाव अथवा शारीरिक श्रम के समय), तब-तब इन धमनियों के आयतन में अपने आप फैलाव आ जाता है। फलत: उनमें रक्त का बहाव बढ़ जाता है और हृदय को आड़े वक्त भी आवश्यक आहार मिलता रहता है।

समस्या तब पैदा होती है, जब इन धमनियों में कहीं रुकावट आ जाती है। इसका सबसे बड़ा कारण धमनियों की भीतरी दीवारों में वसा की परत जमा होना है। इनमें कभी-कभी यों ही सिकुड़न आ जाती है, जिससे हृदय को उसकी पूरी खुराक नहीं पहुंच पाती। जिस समय हृदय पर अधिक काम का जोर पड़ता है, तब उसके लिए यह स्थिति असहनीय हो जाती है और हृदय तिलमिलाकर अपनी रुग्ण अवस्था की सूचना बाहर भेजने लगता है। अलग-अलग लक्षणों के रूप में हृदय की धमनियों का इस तरह अवरुद्ध हो जाना ही ‘हृदय रोग’ कहलाता है।

हृदय रोग के दो रूप हैं:
1. इनजाईनां
2. दिल का दौरा

इनजाईनां:

दरअसल इनजाईनां, कारोनरी धमनी रोग की प्रारंभिक अवस्था है। शक्ति-वाहक कारोनरी धमनियों में उत्पन्न हुई सिकुड़न को काफी हद तक सहने की कोशिश करता है, लेकिन जब स्थिति तनावपूर्ण हो जाती है तब वह प्रतिकूल परिस्थितियों को कबूल नहीं कर पाता। रोगी को इसका पता उस समय लगता है, जब उसके सीने में बाईं ओर दर्द उठने लगता है, भारीपन रहने लगता है, बेचैनी होने लगती है और वह स्वयं को थका-थका महसूस करता है। जांच कराने से ही रोग का पता लगता है। यह इनजाईनां की स्थिति है।

दिल का दौरा (Heart Attack):

दिल को जीवन देने वाली किसी बड़ी कारोनरी धमनी में जब एकाएक रुकावट आ जाने से रक्त का बहाव रुक जाता है, तब दिल के उस भाग की मांसपेशियां जीवित नहीं रह पातीं। इसे ही ‘दिल का दौरा पड़ना’ कहा जाता है। सीने में बाईं ओर प्राणलेवा दर्द उठना, छाती पर कोई बहुत भारी वस्तु रख दिए जाने का अहसास होना, दर्द का कंधे, गर्दन और उंगलियों तक फैलना, पसीने छूटना, घबराहट होना, मितली की शिकायत होना आदि इसके लक्षण हैं। इन लक्षणों वाला रोगी बेहोश भी हो सकता है और धड़कन भी रुक सकती है।

ऐसी स्थिति में तुरंत डॉक्टरी सहायता लेनी चाहिए। रोगी को पीठ के बल लिटा दें। कपड़े ढीले कर दें । यदि दिल की धड़कन रुकती नजर आए, तो उसके सीने की मालिश करें, दबाव के झटके दें, मुंह सटाकर श्वास दें।

रोग के कारण:

  1. खोज से पता लगा है कि मोटापा, धूम्रपान, रक्त में कोलेस्ट्रोल की अधिकता, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मदिरा सेवन, अधिक मात्रा में वसायुक्त आहार का सेवन, भाग-दौड़ का तनावयुक्त जीवन आदि इसके मुख्य कारण हैं।
  2. मोटापे के कारण रक्त वाहिनियों में वसा तथा विकार जम जाता है जिससे मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। फलतः हृदय को अधिक शक्ति लगाकर काम करना पड़ता है। हृदय थकता है और रोग बढ़ता जाता है।
  3. रक्त में अम्ल तत्त्व बढ़ जाने से रक्त दूषित हो जाता है, जिससे हृदय कमजोर हो जाता है।
  4.  बार-बार रोगी होने से और औषधियों का अधिक प्रयोग करने से हृदय क्षतिग्रस्त हो जाता है।
  5. व्यायाम या योगासन न करने से रक्त की नलियां साफ नहीं हो पाती है, जिससे रक्त संचालन में बाधा पड़ती है।
  6. शरीर में वायु का प्रकोप हो जाने से हृदय पर बोझ बढ़ जाता है, जो रोग का कारण बनता है।
  7. मानसिक तनाव के कारण हृदय को पूरा रक्त नहीं मिलता, काम करने में अवरोध पैदा होता है, क्योंकि हृदय तथा पूरे शरीर को नाड़ी-संस्थान ही चलाता है।
  8. प्रकृति ने रक्त को शुद्ध करने के लिए शरीर में तीन यंत्र रखे हैं: फेफड़े, त्वचा और गुर्दे। इनमें से कोई भी अंग ठीक से काम नहीं करेगा, तो हृदय रोग की आशंका बनी रहेगी।
  9. अधिक काम करना, मनोरंजन का कोई साधन न होना, पूरी नींद न लेना, समय पर न खाना, मांस खाना, अधिक चाय या कॉफी पीना ये सब हृदय रोग के कारण हो सकते हैं।

हृदय को स्वस्थ कैसे रखें:

योग व्यायाम करने, सैर करने, शरीर शिथिल करने, काम के साथ-साथ मनोरंजन को भी अपने जीवन का अंग बनाने, आवश्यकतानुसार नींद लेना, शुद्ध भोजन करने, भाग-दौड़ अधिक न करने, तनाव व क्रोध से बचने, नशीले पदार्थों का त्याग करने, विषय-वासनाओं को सीमा में रखना, अपने फेफड़े तथा गुर्दों को सक्रिय रखने आदि से स्वस्थ रहा जा सकता है। शरीर एक इकाई है और हर अंग एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। एक अंग के खराब होने से दूसरा अंग भी प्रभावित होता है।

उपचार:

  1. यदि दिल का तेज दौरा पड़े, तो तुरंत डॉक्टरी सहायता लेनी चाहिए। आवश्यक उपचार तथा दवा लेने से हिचकिचाना नहीं चाहिए। जैसे ही स्वास्थ्य में थोड़ा सुधार हो, शरीर की शक्ति के अनुसार योग को अपना लेना ही ठीक रहता है, क्योंकि योग उपचार के अतिरिक्त हृदय के लिए कोई भी कारगर उपाय नहीं है। सबसे पहले उन सब कारणों को दूर करना चाहिए, जिनसे रोग की संभावना बनी है।
  2. शुरू-शुरू में हल्का व्यायाम करना, शिथिल करना, पेट साफ रखना, नमक को छोड़ देना या कम कर देना, चिकनाई छोड़ देना, मीठा कम कर देना, केवल सब्जियों व फलों के रस तथा सब्जी के सूप पर कुछ दिन के लिए रहना तथा संपूर्ण आराम करना चाहिए।
  3. गर्म पांव का स्नान करें। उसके बाद सिर धोकर पूरे शरीर का स्पंज करें। रोगी स्नान कर सकने की स्थिति में हो, तो हल्के गर्म पानी से स्नान करवाकर उसे सुला दें।
  4. छाती पर हल्का-हल्का थपथपाएं, कंपन (vibration) दें। हृदय पर हल्का दबाव देते हुए झटके दें। ये सब हृदय की मालिश हैं। शाम में ताजे पानी से गीलाकर निचोड़े गए छोटे तौलिए को 5 मिनट के लिए दिल पर रखें। उस पर एक सूखा तौलिया रखकर शरीर पर आवश्यक कपड़ा ओढ़ लें। उस तौलिए के ऊपर हाथ से 5 मिनट के लिए कंपन दें तथा थपथपाएं। यदि यह उपचार सुखद लगे, तो उसे 5 से 10 मिनट और 10 से 15 मिनट तक ले जाएं। जितना ठंडा पानी रोगी सहन कर सकता हों, कराएं, परंतु यह ध्यान रखें कि उसे सर्दी नहीं लगनी चाहिए।
  5. 2 मिनट तक हल्की गर्म सेंक छाती पर देकर 2 मिनट ठंडी सेंक दें। ऐसा 4 बार करें। जितना उपचार आराम से कर सकते हैं, करें। रोगी को थकाएं नहीं।

यदि रोगी में शक्ति हो, तो बाथ टब में नमक डाले गर्म पानी से उसे 15-20 मिनट तक स्नान कराएं। सिर पर ठंडा तौलिया रखें। अंत में हल्के गर्म पानी से स्नान करवा कर उसे बाहर निकालें और एक घंटा बिस्तर पर आराम करने दें। दो दिन गर्म पांव का स्नान और एक दिन पूरा गर्म स्नान कराएं। उसमें तौलिए से हल्की मालिश भी कर सकते हैं।

हृदय रोगी को कभी ठंडे पानी से स्नान नहीं करवाना चाहिए। यदि रोगी को उपचार में घबराहट हो, तो तुरंत उपचार बंद कर उसे बिस्तर पर लिटा दें और छाती पर हल्की-हल्की मालिश दें।

रोगी यदि अपने को स्वस्थ अनुभव करे, तो कमरे में या बरामदे में अपनी सुविधानुसार टहलें या लेटे-लेटे थोड़ा व्यायाम करें। बीच-बीच में आराम करते रहें, थकाना नहीं हैं।

स्वस्थ होने पर हल्के आसन, जिनमें वज्रासन, उष्ट्रासन, शलभासन (बारी-बारी से एक-एक पांव को उठाकर), मकरासन, पवनमुक्तासन, मत्स्यासन, सिंहासन व खुलकर हँसने का हल्का अभ्यास करें। शक्ति के अनुसार अभ्यास को बढ़ाएं। अंत में 5 मिनट का शवासन करें। प्राणायाम में नाड़ी शोधन, कपालभाति तथा भ्रामरी को नियमित करें।

प्रतिदिन योग-निद्रा 20 मिनट से 40 मिनट तक करें। उसके बाद आधे घंटे तक आंखें बंद करके रुचिकर संगीत सुनें और उसका आनंद लें।

आहार:

हृदय रोगी के लिए आहार का नियमित करना ही उपचार है। रोगी को यह निश्चित करना चाहिए कि कितने कम-से-कम भोजन से उसका काम चल सकता है। यदि रोगी का वजन अधिक हो, तो इसका पहला काम यह है कि वह अपना वजन कम करें। इस रोग में उपवास से बचना चाहिए। इसलिए फलों के रस, सब्जियों के रस, मधु, किशमिश, अंजीर, गाय का ताजा दूध, सब्जियों के सूप आदि (Liquid diet) ही लें।

हृदय यंत्र की स्वस्थता संपादन करने के लिए कैल्सियम, सोडियम, विटामिन बी-1 युक्त आहार ही विशेष रूप से आवश्यक है।

रोगी जो भी खाए, थोड़ा खाए, चबाकर खाए, आराम से खाए। जो कुछ पिए, घूंट-घूंटकर पिए। कहीं बाहर से आए, तो आराम करके ही खाए।

भोजन इस प्रकार रखें:

सुबह 6-7 बजे: नीबू पानी, नीबू-गर्म पानी मधु, किसी फल या सब्जी का रस मधु डालकर।
9-10 बजे: के बीच में इलायची, अदरक व काली मिर्च से उबला थोड़ा पानी मिला दूध। इसके साथ 25-30 दाने भीगी किशमिश, अंजीर या आधा घंटा पहले कोई फल लेकर कुछ दूध लें या पतली सूजी की खीर में किशमिश डाल लें। उसमें मीठा कम रखें। दूध और खजूर उबालकर भी ले सकते हैं। चीनी के स्थान पर गुड़ का व्यवहार करें।
12 बजे: किसी फल (संतरा, मौसमी, अंगूर) या सब्जी का रस।
2 बजे: एक दिन पहले सने आटे की चपाती-2, सलाद, उबली सब्जी तथा दही (खट्टा नहीं हो) आधे पेट खाना खाएं।
5 बजे: देसी चाय या नीबू शहद-गर्म पानी अथवा फल, जो भी अच्छा लगे या एक प्याला दूध।
7 बजे: केवल फल ।
8 बजे: सब्जी का सूप, यदि इससे अधिक इच्छा हो, तो भुने हुए चने या परमल सब्जी के सूप के साथ थोड़े से ले लें।

दिन में दो चम्मच आंवले का रस आधे चम्मच मधु के साथ ले सकते हैं।

गाजर के मौसम में गाजर, अदरक व टमाटर का रस या गाजर-सेब का रस बहुत लाभदायक है।

मधुमेह के रोगी को फल तथा सब्जी का रस दे सकते हैं। किशमिश भी भिगोकर दे सकते हैं। चपाती न खाएं, तो नीबू-मधु-गर्म पानी में देकर देख लें। एक सप्ताह देने के बाद शुगर टेस्ट करवा लें और उसके अनुसार भोजन की व्यवस्था करें।

भोजन में प्रतिदिन काफी मात्रा में सलाद का प्रयोग करें। चावल, चपाती, दालें कम खाकर फल तथा सब्जी के रस अधिक मात्रा में लें। इससे रक्त क्षारीय रहेगा। क्षारीय रक्त को शरीर में दौड़ाने में हृदय को सुविधा होती है, जिससे पुष्ट कोशाणुओं का निर्माण होता है।

खाना खाते समय कपड़े ढीले रखें। भोजन के बाद थोड़ा आराम करें। बाईं करवट लेट जाएं। खाना खाने के बाद कहीं काम पर जाना हों, तो बहुत थोड़ा खाएं।

रात का भोजन हल्का रखें और सोने से दो-ढाई घंटे पहले ले लें। भोजन प्रसन्न मुद्रा में करें, बातें नहीं करें, क्रोध नहीं करें, ऊंचा नहीं बोलें।

पानी का व्यवहार आवश्यकतानुसार करें। खाने के साथ पानी बहुत कम पिएं। जब भी पानी पिएं, थोड़ा-थोड़ा पिएं। अचानक पेट भरकर पानी नहीं पिएं। बहुत ठंडा पानी नहीं पिएं।

जब भी स्वयं को थका हुआ अनुभव करें, तुरंत लेटकर आराम करें। जल्दबाजी को अपने जीवन से निकाल दें। दिन में एक बार खुलकर हँसें। इससे हृदय शक्तिशाली होता है।