टॉन्सिल (गल-ग्रंथि - Tonsil)

टॉन्सिल: लक्षण, कारण व इलाज।Tonsil: Symptoms, Causes And Treatments In Hindi

गल-ग्रंथि हमारे स्वास्थ्य के लिए परमावश्यक है। इसका बढ़ना या छोटा होना या इसका कम काम करना या आवश्यकता से अधिक काम करना बुरा है। इसके ठीक से काम न करने से स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता। यह ग्रंथि पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में बड़ी होती है।

गल-ग्रंथि से जो स्राव निकलता है, उसके कम बनने से या बिल्कुल न बनने से बच्चा मंद बुद्धि का होता है। उसका मानसिक विकास ठीक प्रकार से नहीं होता। शरीर बेडौल हो जाता है और बच्चा सुस्त रहता है। ग्रंथि के विकृत होने से और भी कई रोग हो जाते हैं, विशेषकर स्त्रियों में। उनमें मोटापा आ जाता है, त्वचा भारी हो जाती है, उसमें रूखापन आ जाता है, बाल गिरने लगते हैं, स्मरणशक्ति कम हो जाती है। शरीर का तापमान कम रहता है और मिजाज चिड़चिड़ा हो जाता है।
जब यह ग्रंथि आवश्यकता से अधिक काम करती है, तब भी स्वास्थ्य खराब रहता है, हृदय गति तेज हो जाती है, नाड़ी-स्पंदन 70-75 से बढ़कर 90-100 रहने लगता है। इनके अतिरिक्त रक्तहीनता, दुर्बलता और कमजोरी बढ़ती है तथा हल्का ज्वर भी रहने लगता है। टॉन्सिल वसा के संवर्तन के लिए आवश्यक है। जब यह काम कम करती है या टॉन्सिल काट दिए जाते हैं, तो व्यक्ति मोटा होता जाता है। वसा के ऑक्सीजनीकरण का इस ग्रंथि से विशेष संबंध है। यह ग्रंथि खनिज लवण के संवर्तन के लिए भी आवश्यक है। ग्रंथि के न होने से अस्थियां भली प्रकार नहीं बनतीं। वे छोटी तथा पतली रहती हैं। यह ग्रंथि यकृत को शर्कराजना से शर्करा बनाने में भी सहायता करती है। यह उन विषैले पदार्थों, जो शरीर में बनते रहते हैं, का नाश करती हैं। शरीर की वृद्धि, बुद्धि के ठीक-ठीक विकास से भी इसका संबंध है।

कारण:

अधिक ठंडी या अधिक गर्म वस्तुएं, अधिक खटाई, चॉकलेट, गोलियां, टॉफियां आदि खाने, पेट खराब रहने तथा कब्ज रहने से यह रोग होता है।

उपचार:

नित्यप्रति सूत्र तथा जल नेति का अभ्यास करने के बाद नाक में घी गर्म करके अवश्य डालें। सप्ताह में तीन बार कुंजल करें, तीन सप्ताह के बाद सप्ताह में दो बार ऐसा करें।

फिटकरी डालकर सुबह तथा रात में सोने से पहले गरारे करें। उसके बाद गले में ग्लिसरीन लगाएं।

गले पर 5 मिनट तक गर्म सेंक देकर आधे घंटे के लिए ठंडी पट्टी बांधे। ऐसा दिन में दो बार करें। पट्टी उतारने के बाद गले के ऊपर से नीचे तक थोड़ा दबाव देकर तेल से हल्की मालिश करें।

दिन में एक बार पेट पर ठंडी गीली पट्टी की लपेट दो घंटे के लिए या रात में पट्टी बांधकर ऊपर गर्म पट्टी लपेटकर सोएं और सुबह खोलें।

आसनों में अर्धमत्स्येंद्रासन, भुजंगासन, धनुरासन, मकरासन, हलासन, सर्वांगासन, ग्रीवा चालनासन व मत्स्यासन का अभ्यास करें और सिंहासन का सुबह-शाम 5 बार (पूरी तरह जुबान को बाहर खींचकर शेर की तरह दहाड़े) अभ्यास करें।

उज्जाई तथा भ्रामरी प्राणायाम का सुबह-शाम अभ्यास करने से बहुत लाभ मिलेगा।

आहार:

आयोडीन तथा विटामिन ‘ई’ युक्त आहार इस रोग में लाभदायक है। गेहूं व अंकुर के तेल में विटामिन ‘ई’ पाया जाता है। केला, अंकुर, किशमिश, मुनक्का, टमाटर तथा गाजर में भी कुछ मात्रा में विटामिन ‘ई’ पाया जाता है।

शुरू-शुरू में 7 दिनों तक गाजर, पेठा, खीरे के रस में थोड़ा मधु डालकर, किशमिश को भिगोकर उसका रस, अंगूर, संतरा, मौसमी के रस पर रहें। इस के अतिरिक्त अंकुरित गेहं भी लें। (अंकुर एक-डेढ़ सेंमी. निकल आने चाहिए।) 20-30 ग्राम अंकुरित गेहं मिक्सी में डालें। उसमें एक केला, कुछ किशमिश, 100 -150 ग्राम दूध, थोड़ा पानी, थोड़ा गुड़ या शक्कर डालकर मिक्सी से पेय बना लें। इसे सुबह-शाम लें। बाकी फल तथा सब्जियों के रस तथा एक समय कम रोटी, सब्जी तथा सलाद खाएं। सोयाबीन के दूध का दही भी ले सकते हैं। अंकुरित गेहं के दूध को सर्दियों में गर्म पानी में रखकर थोड़ा गर्म करके भी ले सकते हैं। दो माह इस प्रकार के भोजन तथा उपचार करने से लाभ होगा।

बर्फ, आइसक्रीम, अचार, चटनियां, खट्टे फल वगैरह से परहेज करना चाहिए।