त्वचा रोग (Skin Diseases)

हमारी त्वचा पांच ज्ञानेंद्रियों में से एक ज्ञानेंद्रिय है, जिसका गुण है ‘स्पर्श’। इससे हमें सर्दी – गर्मी का पता चलाता है। इसके द्वारा हमारा रक्त भी शुद्ध होता है। त्वचा रक्त शुद्ध करने का तीसरा अंग है। त्वचा की लाखों ग्रंथियां रक्त को वहीं शुद्ध करती हैं और विकार को पसीने द्वारा या मैल द्वारा रोमछिद्रों के रास्ते बाहर कर देती हैं।
कारण:
दिन भर काम करने, खाने-पीने, भाग दौड़ करने तथा सोच-विचार करने से शरीर में कुछ-न-कुछ टूट-फूट होती रहती है। शरीर का यह विकार रक्त में मिल जाता है। चर्म की ग्रंथियां रक्त को वहीं शुद्ध कर रक्त को सक्रिय कर देती हैं, जिससे रक्त सरलता से हृदय की ओर चला जाता है और बचा हुआ विकार फेफड़ों में शुद्ध होकर शरीर को पुष्ट करने के लिए धमनियों में दौड़ता है।
त्वचा द्वारा रक्त को शुद्ध करने की प्रक्रिया बड़ी सरल है, क्योंकि यह स्थानीय है। नहीं तो हृदय और फेफड़ों तक शुद्ध होने के लिए रक्त को लंबी दौड़ लगानी पड़ती है। यदि त्वचा सक्रिय नहीं होगी, तो शिराओं में विकार जमा हो जाएगा। रक्त की दौड़ में रुकावट पड़ेगी। चर्म रोग, जोड़ों के दर्द, गठिया, गुर्दे तथा फेफड़ों के रोग हो सकते हैं। केवल त्वचा को सक्रिय रखकर कई रोगों से बचा जा सकता है।
उपचार:
पेट को साफ रखना, प्रतिदिन सूत्र नेति तथा जल नेति करना, ताकि नाक खुल जाए और रक्त शुद्ध हो जाए।
खुली शुद्ध हवा में योगासन करना, पश्चिमोत्तानासन, अर्धमत्स्येंद्रासन, सुप्तवज्रासन, शलभासन, पवनमुक्तासन, सर्वांगासन का नियमित अभ्यास त्वचा को सक्रिय करेगा। गर्मियों में शीतली प्राणायाम और सर्दियों में भस्त्रिका प्राणायाम तथा नाड़ी-शोधन अधिक देर आंतरिक कुंभक के साथ करें।
प्रतिदिन स्नान करें, स्नान करने से पहले पूरे शरीर को 5-7 मिनट तक हाथों से रगड़ कर गर्म करें या धूप में तेल मालिश करें। फिर ताजे पानी से स्नान करें, स्नान करते हुए भी तौलिए से या हाथों से शरीर खूब रगड़ें। सर्दियों में यदि गर्म पानी से स्नान करना हो, तो पहले गर्म पानी से और फिर ठंडे पानी से स्नान करें। सिर पर गर्म पानी नहीं, बल्कि ताजा ठंडा पानी ही डालें। इससे त्वचा बहुत अधिक सक्रिय होती है। त्वचा को स्वस्थ रखने के लिए पानी शरीर के तापमान से कम या ठंडे पानी से स्नान करना चाहिए। त्वचा गर्म पानी से कमजोर और ठंडे पानी से स्वस्थ होती है।
सर्दियों में धूप स्नान करने और तेल की मालिश करने से त्वचा को सीधी खुराक मिलती है। तेल से मालिश हृदय की ओर करनी चाहिए। मालिश से मांसपेशियां लचीली होती है तथा त्वचा की खुश्की दूर होती है।
प्रतिदिन कुछ समय खुले बदन धूप लेनी चाहिए। स्नान के बाद थोड़ी देर धूप में खड़े होकर त्वचा को सुखाएं।
प्रतिदिनं साबुन का प्रयोग त्वचा के लिए ठीक नहीं होता। महीने में एक-दो बार ही साबुन का प्रयोग करें। स्नान के लिए आंवला, रीठा तथा शिकाकाई के पाउडर से स्नान करें। इसे एक दिन पहले गिलास में भिगो दें। दूसरे दिन इससे स्नान करें। सिर व त्वचा साफ तथा चमकदार होगी। बेसन तथा मुलतानी मिट्टी मलकर भी स्नान किया जा सकता है। इसे आधा घंटा मलकर धूप में सुखाकर स्नान करें। इससे खारिश, फोड़े-फुंसी, एग्जीमा आदि नहीं होंगे।
स्नान के बाद पाउडर लगाने से त्वचा के छिद्र बंद हो जाते हैं, जिससे पसीना नहीं आता और रक्त शुद्ध नहीं होता। यह आदत त्वचा रोग पैदा करती है।
शरीर पर खुले कपड़े पहनने की आदत बहुत अच्छी है। नीचे के कपड़े (बनियान, कच्छा आदि) सूती होना चाहिए। नायलोन का कपड़ा त्वचा को हानि पहुंचाता है। खादी का कपड़ा त्वचा के लिए बहुत अच्छा है।
एग्जीमा रोग होने पर मिट्टी की पट्टी दिन में दो बार तथा नारियल का तेल नीबू मिलाकर लगाएं। फोड़े-फुंसी गर्म सेंक देकर मिट्टी लगाने से ठीक होते हैं।
आहार:
त्वचा के लिए विटामिन ‘ए’ तथा ‘सी’ युक्त आहार की आवश्यकता होती है। इसलिए ऐसा आहार लेना चाहिए, जिसमें विटामिन ‘ए’ और ‘सी’ अधिक मात्रा में हो।
गाजर का रस, आंवले का रस, संतरा, मौसमी, अनन्नास फल तथा इनके जूस, पपीता, आम, नीबू, खीरा, ककड़ी, बंदगोभी, पालक, अन्य हरे साग-सब्जी तथा सलाद खूब खाने चाहिए। भोजन में अंकुरित दालें, चोकर तथा साग वाली राम रोटी, दलिया-दूध, दही-पनीर आदि उपयोगी आहार हैं।
भोजन अपनी भूख के अनुसार लेना चाहिए। खट्टी चटनियां, अचार, सॉस तथा तली-भुनी चीजें त्वचा के लिए हानिकारक हैं।
फुलबहरी (Leucodrama) रोग में संतरा जाति के फल लेना वर्जित है।
2 Comments
Simarpeet Kaur · August 27, 2022 at 2:19 PM
Thanks, for providing home treatment for skin. I tried these, they really works.
Jessica · October 27, 2022 at 7:21 AM
Thanks for your tips.