जोड़ों का दर्द (Rheumatic pain)

शरीर में अम्ल तत्त्व बढ़ जाने से यह रोग होता है। इस अम्ल तत्त्व के कारण रक्त दूषित हो जाता है। शरीर में वायु का प्रकोप बढ़ जाने से दूषित पदार्थ जोड़ों में रुकने लग जाते हैं, जिनसे दर्द पैदा होता है और शरीर में अकड़न आ जाती है। रक्त के दूषित होने से शरीर का विषाक्त पदार्थ पूरे शरीर में संचारित होता है, जिससे ज्वर भी रहने लगता है। साथ-साथ जोड़ों में सूजन भी हो जाती है। धीरे-धीरे यह रोग पूरे शरीर के जोड़ों में फैल जाता है, जिससे रोगी का चलना, उठना, बैठना आदि मुश्किल हो जाता है।
रोग का कारण:
कोई भी रोग बाहर से नहीं आता। रक्त के दूषित होने से ही रोग होता है। जो कारण श्वास-तंत्रों के रोगों के हैं, वे ही कारण इस रोग के भी हैं। इसमें रक्त के अम्ल तत्त्व से ऑक्जेलिक एसिड (oxalic acid) अधिक बनने लगता है, जो शरीर के जोड़ों में एकत्र होकर सूजन,दर्द तथा अकड़न पैदा करता है। यही इस रोग का प्रधान कारण है।
उपचार:
त्रिफला पाउडर से पेट साफ करना पहली आवश्यकता है। स्नान करने वाले बड़े टब में 100 ग्राम मैग्नेशिया नमक (Epsum Salt), जो दवा विक्रेताओं से मिल जाता है तथा 100 ग्राम खाने वाला नमक गर्म पानी में डालकर आधा घंटा रोगी को उसमें लिटाना और सभी जोड़ों तथा शरीर पर तौलिए से पानी में मालिश करनी चाहिए। जब तक रोगी टब में रहे, सिर पर ठंडे पानी का तौलिया रखें। सिर पर गर्म पानी नहीं डालना चाहिए। उसके बाद गर्मी हो, तो ठंडे पानी से स्नान करवाएं। सर्दी हो, तो हल्के गर्म पानी से स्नान करवाएं। उसके बाद आधे घंटे या एक घंटे के लिए रोगी को सुला दें। सुलाने से पहले जोड़ों को थोड़ा व्यायाम दें, ताकि जोड़ों में जमा हुआ विकार अपना स्थान छोड़ें।
यदि बाथ टब न हो, तो 15 मिनट का वाष्प स्नान या गर्म पांव का स्नान दें। आधे घंटे का धूप-स्नान दें और धूप में शरीर तथा जोड़ों की किसी आयुर्वेद औषधि युक्त तेल से मालिश करें या लाल रंग की बोतल में नारियल के तेल को 20-25 दिन तक धूप में रखें। तब यह तेल भी जोड़ों की मालिश करने योग्य बन जाएगा। जब शरीर धूप में पूरी तरह गर्म हो जाए, तो जोड़ों को खोलें, बंद करें व उन्हें पूरा व्यायाम दें।
कुंजल, जल नेति व सूत्र नेति का अभ्यास कर शरीर को शुद्ध करें।
जैसे ही दर्द तथा सूजन कम हो और जोड़ खुलने लगें, तो थोड़ा योगासनों का अभ्यास जैसे सूर्य नमस्कार, कमर चक्रासन, वज्रासन, मकरासन, पवनमुक्तासन का अभ्यास करें। योग निद्रा का प्रतिदिन आधे घंटे तक अभ्यास करके शरीर को शिथिल करें।
यदि दर्द तथा सूजन घुटनों में, कलाइयों में, कुहनी या कंधों में हो, तो स्थानीय 3 मिनट गर्म, 2 मिनट ठंडा सेंक दें, उनकी मालिश करें और उन जोड़ों को व्यायाम दें।
आहार:
इस रोग में आहार-व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए, जिसमें विटामिन ‘ए’ तथा विटामिन ‘डी’ की मात्रा अधिक हो, परंतु टमाटर तथा पालक का साग या रस नहीं लेना चाहिए, क्योंकि इनमें ऑक्जेलिक एसिड (oxalic acid) होता है।
इस रोग में कच्ची सब्जियों के जूस विशेषकर: गाजर, खीरा, पेठा, लौकी, अदरक तथा फलों के रस: संतरा, मौसमी, सेब, अनार, अंगूर आदि लेने से जोड़ों के दर्द, सूजन तथा अकड़न थोड़े ही दिनों में कम की जा सकती हैं।
इस रोग में लहसुन तथा अदरक का उपयोग खुलकर करें। लहसुन के एक चम्मच रस में आधा चम्मच मधु मिलाकर दिन में दो बार लेने से वायु का प्रकोप कम होता है। सब्जी में भी इन्हें डालें।
सलाद पर एक-दो चम्मच जैतून का तेल डालकर खाने से विटामिन ‘ए’ तथा ‘डी’ दोनों ही प्राप्त होते हैं।
इन बातों का ध्यान रखते हुए, जो आहार-व्यवस्था दमा रोग में बताई गई है, उसे ही चलाएं। धैर्य से काम लें, क्योंकि रोग समय पर ही जाएगा।
जब आप रोग का उपचार तथा आहार परिवर्तन करेंगे, तब शुरू में दर्द तथा सूजन बढ़ सकती है, बुखार भी तेज हो सकता है। योग द्वारा चिकित्सा करने से अक्सर रोगों में उभार आ जाता है, क्योंकि रोग को शरीर से बाहर निकालना होता है, दबाना नहीं। इसलिए घबराने की आवश्यकता नहीं। उपचार को कम कर दें या दो-तीन दिनों के लिए बंद कर दें। भोजन को पूरे परहेज से चलाते रहें। जब बुखार कम हो, तो उपचार को फिर शुरू कर दें। श्रद्धा तथा विश्वास से लगकर उपचार व परहेज करने से लाभ मिलना निश्चित है। उभार के समय पूरा आराम करें, योग-निद्रा करके शरीर को शिथिल करें। उभार स्वयं ही समाप्त हो जाएगा और रोग में भी लाभ होगा।
3 Comments
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