पीलिया (Jaundice)

इस रोग में रोगी की आंखें, त्वचा, पेशाब, पसीना, कपड़े-सभी पीले हो जाते हैं और रोगी को बुखार भी रहता है। यह लिवर (यकृत) की बीमारी है। लिवर शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है। इसमें से जो रस निकलता है, उसे पित्त (bile) कहते हैं। वह भोजन को पचाने, विशेषकर वसा जाति के पदार्थों को पचाने में काम आता है।
यकृत से पित्त की नली द्वारा, जो पित्त पक्वाशय में भोजन को पचाने के लिए आता है, वह वास्तव में बहुत जहरीला पदार्थ है। जब किसी कारण से पित्त की नली बंद हो जाती है और पित्त छोटी आंत में न उतरकर रक्त में मिल जाता है, तो शरीर का रक्त विष से भर जाता है। तभी यह रोग होता है। शरीर के अन्य सभी यंत्रों से जो विष-समान पदार्थ निकलते हैं, वे सब पित्त के समान जहरीले नहीं होते। इस रोग से शरीर में जो कमजोरी व थकावट आती है, उसका बड़ा कारण यही है कि पित्त का जहर रक्त में मिलकर शरीर के सभी यंत्रों को विषाक्त बना देता है।
लक्षण:
इस रोग में पेट खराब रहता है। सफेद या हरे रंग का बदबूदार शौच होता है, कभी कब्ज हो जाती है, पेट में दर्द रहता है, उल्टी होती है। साथ ही भूख की कमी, आलस्य, सिरदर्द, नींद की कमी, मुख का स्वाद खराब, शरीर का टूटना आदि लक्षण भी दिखाई पड़ते हैं। अनियमित आहार, मानसिक अशांति तथा औषधियों के अधिक उपयोग से पित्त की नली के सिकुड़ जाने या सूज जाने से इस रोग के होने की संभावना पैदा होती है।
उपचार:
- एक सप्ताह लगातार हल्के गर्म (बिना नमक के) पानी का कुंजल करें। बाद में सप्ताह में दो बार ऐसा ही करें। प्रतिदिन जल तथा सूत्र नेति करें, ताकि नाक पूरी तरह खुल जाए और ऑक्सीजन से रक्त की शुद्धि हो ।
- पेट पर दाईं ओर गर्म सेंक 5-7 मिनट देकर 40 मिनट तक मिट्टी की पट्टी दिन में दो बार लगाएं। यदि मिट्टी उपलब्ध न हो, तो आधे घंटे तक फ्रीज के पानी की पट्टी रखें, उसे हर 5 मिनट के बाद ठंडा करें। सर्दियों में ठंडी पट्टी पर गर्म कपड़ा रखें।
- आधे घंटे तक धूप-स्नान देने के बाद स्नान करवाएं। धूप में लेटते हुए सिर को छांव में रखें।
- आधे घंटे के लिए योग-निद्रा का अभ्यास करें। यह बिस्तर पर लेटे-लेटे ही करें।
- वाष्प-स्नान (Steam bath) इस रोग में विशेष लाभ देता है। 10 मिनट का वाष्प-स्नान; यदि यह व्यवस्था न हो, तो 15 मिनट तक गर्म पांव का स्नान देकर तुरंत स्नान करें या सिर को धोकर शरीर को स्पंज कर दें। यदि पूरा स्नान न लिया जा सके, तो दिन में दो बार सिर को धोकर स्पंज करें।
यदि बुखार हो, तो योगासन न करके केवल प्राणायाम करें। शीतली, भ्रामरी, नाड़ी शोधन तथा अग्निसार का लगातार अभ्यास करना चाहिए। जब शरीर में थोड़ी ताकत आए, तो कमर चक्रासन, जानुशिरासन, योग-मुद्रा, अर्धमत्स्येंद्रासन, वज्रासन, उष्ट्रासन, हस्तपादोत्तानासन, मकरासन का अभ्यास करें। थोड़ी और शक्ति आ जाने पर पश्चिमोत्तानासन, हलासन तथा सर्वांगासन को जोड़ सकते हैं। बाद में 5 मिनट का शवासन करें।
आहार:
तीन दिन केवल नीबू के रस के साथ अधिक-से-अधिक पानी का प्रयोग करें, ताकि खुलकर पेशाब आए। उसके बाद तीन दिन गन्ने का रस तथा नीबू पानी, बाद में एक साह संतरा, मौसमी, तरबूज, गाजर, पेठा, खीरे आदि का जूस मधु मिलाकर लें। एक सप्ताह छेने का पानी मधु मिलाकर या क्रीम निकला दूध-मधु डालकर, सब्जी का सूप, चने का सूप, रसदार मीठे फल, पपीता, खरबूजा, तरबूज आदि लें। एक समय में एक ही चीज लेनी है। फिर दूसरी चीज, जो मौसम के अनुसार सुविधापूर्वक मिल जाए, तो डेढ़-दो घंटे बाद लें। जब शरीर का पीलापन ठीक हो और कुछ आराम मिले, तो सुबह नाश्ते में दूध-दलिया या सूजी की खीर लें। दोपहर में 1-2 चपाती, सलाद, उबली बिना घी की सब्जी, दही का रायता या दही का मट्ठा लें। बाकी समय सब्जी के रस, सब्जी का सूप व फल ही लें।
नींबू-शहद का पानी, पेठा, कच्ची गाजर, लौकी, खीरे का जूस, किशमिश भिगोकर और पपीता इस रोग का विशेष आहार है।
सुझाव:
इस रोग में अधिक परिश्रम करने से बचना चाहिए। जब तक रोगी रसाहार पर रहे, पूरा आराम करे। जब शरीर में ताकत आए, तब वह थोड़ा-बहुत काम करे। इस रोग में धैर्य से काम लेना चाहिए, क्योंकि यह रोग धीरे-धीरे ही ठीक होता है।
0 Comments