तनाव (Stress)

चिंताओं के जीवन में जीना, समस्याओं को सुलझाने के स्थान पर उसे टालते जाना, काम करने से डरना, उससे मन चुराना, बात-बात पर क्रोध करना, किसी पर विश्वास न होना तथा भयग्रस्त रहना इस रोग के कारण हैं। मानसिक अस्वस्थता के कारण पाचन-क्रिया तथा स्नायु तंत्र प्रभावित होने लगते हैं, जिससे शरीर के कई भागों में रोग उपजने लगते हैं। चिकित्सकीय भाषा में इन्हें ‘साइकोसोमाटिक डिजीजेज’ कहते हैं। ऐसी स्थिति में आंत का फोड़ा, नासूर तथा दिल के रोग हो जाते हैं।
लक्षण:
हाइपरटेंशन वाले व्यक्ति अक्सर अधिक खाने लगते हैं और वह भी तली-भुनी चीजें अधिक पसंद करते हैं, जिससे शरीर अधिक दोषयुक्त हो जाता है। तथा रोगी कामी भी हो जाता है। जीवन में व्यायाम तथा शिथिलीकरण बिल्कुल नहीं होता, जिसका परिणाम होता है दिल के रोग और मृत्यु |
मानसिक दबाव में जीने वाले व्यक्ति जहां पेटू हो जाते हैं, वही कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिनकी भूख ही मारी जाती है। ऐसे रोगी कभी ढंग से खाना ही नहीं खाते। परिणामस्वरूप वे कुपोषण का शिकार होकर कुपोषण से जुड़ी अन्य शारीरिक विकृतियों की चपेट में आ जाते हैं। स्त्रियों में दौरे पड़ना तथा अचानक बेहोश हो जाने जैसे लक्षण दिखाई देते हैं या पागल होकर उल्टा-सीधा बोलने लगती हैं।
मानसिक दबाव में रहने वाले अनेक रोगी पलायनवादी हो जाते हैं। अर्थात् जब वे स्थिति का मुकाबला करने का साहस नहीं जुटा पाते और अपने को बेबस अनुभव करते हैं, तो जुआरी, शराबी या नशेड़ी बन जाते हैं। शराबी व नशेड़ी बनने के बाद वे न केवल मानसिक स्वास्थ्य और संतुलन खो बैठते हैं, बल्कि अन्य कई रोगों के भी शिकार हो जाते
आजकल शहरीकरण और जीवन की भाग-दौड़ तथा स्पर्द्धा की वजह से व्यक्ति के मन पर परिवेशजनित दबावों का बोझ बढ़ता ही जा रहा है। रोजी-रोटी को लेकर असुरक्षा की भावना, संयुक्त परिवारों की टूटन, सामाजिक संबंधों, जैसे-शादी वगैरह की चिंता, महंगाई, गंभीर बीमारी आदि अनेक स्थितियां इस रोग को जन्म देती हैं।
उपचार:
योग द्वारा उपचार करने में सहनशक्ति तथा विश्वास की बहुत आवश्यकता होती है और इस रोग का उपचार केवल योग चिकित्सा में ही है। इसलिए प्रतिदिन सूत्र नेति तथा जल नेति का अभ्यास कर अपनी श्वास नली को पूरी तरह खोलें, क्योंकि इस रोग में श्वास की गति बिगड़ जाती है, श्वास जल्दी चलने लग जाता है और हृदय गति तेज हो जाती है। सप्ताह में तीन बार कुंजलकर भूख को नियमित करें।
योगासनों में सूर्य नमस्कार, जानुशिरासन, सुप्तवज्रासन, धनुरासन, हलासन, मकरासन, पवनमुक्तासन तथा सर्वांगासन का नियमित अभ्यास करके इनको साधें और बाद में अन्य आसनों को जोड़ लें। प्राणायाम में शीतली, उज्जाई, भ्रामरी, नाड़ी शोधन तथा चंद्रभेदी पूरी विधि के अनुसार करें। सिरदर्द रोग में जो अन्य उपचार बताए गए हैं, उन्हें करें। योग-निद्रा प्रतिदिन औषधि लेने की तरह करनी है। यह रामबाण दवा है।
प्रतिदिन ध्यान का अभ्यास इस रोग में बहुत लाभदायक होता है। योग-निद्रा 20 मिनट तक करने के बाद 10 मिनट केवल अपने श्वास को आता-जाता देखें। फिर किसी रुचिकर संगीत का कैसेट पूरी तन्मयता से सुनें और उसका आनंद लें।
आहार:
तनाव में अंदर बहुत खुश्की हो जाती है। इसलिए कुछ दिन फल का रस, सब्जी का रस फल तथा दूध पर रहकर फिर संतुलित व सात्विक आहार पर आएं। सिरदर्द रोग में जैसा आहार बताया गया है, उसे अपनी भूख तथा आवश्यकतानुसार ग्रहण करें।
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