बदहजमी(Indigestion)

भोजन का न पचना, पेट में दर्द होना, वायु बनना, खट्टे डकार आना, गले में जलन होना, पतला दस्त, कभी कब्ज हो जाना, पेट में भारीपन होना आदि अजीर्ण रोग के लक्षण हैं। इस रोग से व्यक्ति शारीरिक तथा मानसिक रूप से दुर्बल हो जाता है। खाए हुए आहार के अच्छी तरह पचने पर ही शरीर का पोषण निर्भर करता है। यदि खाया हुआ भोजन ठीक से न पचे, तो शरीर का हर अंग कमजोर होकर किसी-न-किसी रोग से ग्रस्त हो जाता है। इसलिए अपच रोग अपने आप में कोई भयंकर रोग न होने पर भी बड़ी घातक बीमारी है। ऐसी कोई बीमारी नहीं है, जो इसके द्वारा नहीं हो सकती है।
जिन कारणों से अजीर्ण होता है, उनमें खान-पान की गलती सबसे मुख्य है। साधारणत: अधिक खाना, जल्दी जल्दी खाना, बहुत देर से पचने वाली चीजें खाना, खाने के बाद अधिक भाग दौड़ करना, मानसिक तनाव, खाने के तुरंत बाद सो जाना इत्यादि आदतों के लगातार बने रहने के कारण यह रोग होता है। परिणामस्वरूप शरीर में जहर तथा दूषित पदार्थ एकत्र हो जाते हैं। जब यह जहर पाचन तंत्रों पर हमला कर बैठता है और रक्त को दूषित करके पाचक रसों को निर्बल बना देता है, तब पुराना अजीर्ण रोग कहलाता है।
फेफड़े, गुर्दे, यकृत या मधुमेह रोग होने से भी अजीर्ण रोग हो जाता है। शरीर के जो अंग विकारों को बाहर निकालते हैं, उनके कमजोर या बीमार हो जाने से उनका काम जब आंत खुद करने लगती है या प्रकृति उस विकार को आंतों के रास्ते से निकाल देना चाहती है, तभी यह रोग होता है।
उपचार:
एक सप्ताह लगातार हल्के नमक के पानी से कुंजल करें तथा उसके बाद सप्ताह में दो बार दो-तीन महीने तक बिना नमक के गर्म पानी से कुंजल करें।
यदि रोगी चलता-फिरता है और शरीर में शक्ति हो, तो शंख प्रक्षालन एक बार कर लेने से बहुत लाभ लिया जा सकता है। शंख प्रक्षालन के बाद दो-तीन दिन खिचड़ी खाकर रहना चाहिए। और इसके बाद, 2 सप्ताह तक दही-मट्ठे में जीरा, काली मिर्च तथा काला नमक डालकर तथा सेब, अनार का रस या बेल का शर्बत ही लें और दस दिनों तक पूर्ण आराम करें।
इसके साथ पेट पर गर्म-ठंडा सेंक चार बार और दिन में एक-दो बार पेट पर ठंडी पट्टी ऊपर गर्म कपड़ा लपेटकर, यदि रोगी कमजोर हो, तो 15- 20 मिनट तक पांव का गर्म स्नान करें। उसके बाद ताजे पानी से स्नान करें या सिर को ताजे पानी से धोकर पूरे शरीर का स्पंज करें। इसके बाद आधे घंटे तक पूरा आराम करें।
यदि रोगी कुछ योगासन कर सकता हो, तो कमर चक्रासन, जानुशिरासन अर्धमत्स्येंद्रासन, वज्रासन, भुजंगासन, मकरासन तथा पवनमुक्तासन का अभ्यास प्रतिदिन करें या जितना कर सकते है, उतना करें। धीरे-धीरे अन्य आसनों को बढ़ाएं।
आसन करें या न करें, प्राणायाम अवश्य करना चाहिए। अग्निसार क्रिया, नाड़ी शोधन, प्राणायाम बाह्य कुंभक के साथ उड्डियान बंध लगाकर करें। भस्त्रिका प्राणायाम बाएं से दाएं से, फिर दोनों नासिकाओं से करें।
उपचार के बाद या रात को 15-20 मिनट का शिथिलीकरण व योग-निद्रा भी कर सकते हैं|
आहार:
आहार में परहेज ही अजीर्ण की चिकित्सा है। इसलिए कुछ दिनों या सप्ताह भर का उपवास बहुत लाभ देता है। उपवास में नीबू पानी गर्म या ठंडा मौसम के अनुसार दिन में दो से चार बार, दो या तीन बार अनार, सेब का रस। यदि बेल फल मिलता हो, तो शक्कर बेल का शर्बत दिन में एक-दो बार लें और यह उपवास 3-4 सप्ताह तक चला लें और ऊपर बताया गया पथ्य दिन में 6 से 8 बार लें, तो बहुत लाभ उठाया जा सकता है। यदि आप चाहें, तो दही का मट्ठा और जीरा-नमक डालकर तथा सब्जी का सूप दिन में एक-दो बार ले सकते हैं। उपवास में पूरा आराम करना चाहिए। बाद में कच्ची सब्जी का रस शहद डालकर ले सकते हैं। सब्जियों का कच्चा रस पाचन को ठीक करने तथा भूख बढ़ाने में बहुत सहायक होता है।
बाद में एक समय चपाती, सलाद, सब्जी, दही, फल, दूध, सब्जी का जूस, सूप आदि ही लें। जैसे-जैसे आप स्वस्थ होते जाएं, वैसे-वैसे अपने भोजन को बढ़ाते जाएं, परंतु फल का रस, सलाद, सब्जियों के रस, सूप आदि को 40 से 50 प्रतिशत तक अपने भोजन में स्थान दें, तो आपको अजीर्ण के अलावा अन्य रोगों में भी लाभ होगा।
सुझाव:
- कभी भी भूख से अधिक नहीं खाएं। जितने कम भोजन से गुजारा हो जाए, उतना ही करें।
- यदि भोजन करते समय प्यास लगे, तो थोड़ा गर्म पानी पिएं। भोजन करने से आधा घंटा पहले नीबू का पानी पीने से भूख लगती है तथा पाचन अच्छा होता है।
- भोजन करने के बाद बाईं ओर करवट लेकर लेटें। उससे खाना पचाने में सहायता मिलती है।
- रात का भोजन सोने से दो-ढाई घंटे पहले करें और सोते समय पेट पर ठंडी पट्टी लपेटें, उस पर गर्म शाल लपेटें। उसे दो घंटे बाद या सुबह ही खोलें ।
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