यकृत का प्रदाह (Inflammation of the liver)

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यकृत (लिवर) ग्रंथि के न होने से व्यक्ति 24 घंटे भी जीवित नहीं रह सकता है, क्योंकि खाद्य रस लेकर रक्त, जिस समय लिवर के भीतर से होकर जाता है, उस समय यकृत के कोष शरीर के उपयोगी खाद्य का मार्ग छोड़ देते हैं और उसके भीतर विद्यमान विषाक्त तथा निरर्थक पदार्थ को पकड़कर रक्त के आवर्जना के साथ पित्त के आकार में बाहर निकाल देते हैं। इसलिए लिवर को ‘खाद्य परीक्षक’ (food inspector) कहा जाता है।
एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रतिदिन लगभग 600 मिलि. पित्त निकलता है। यह आंत में जाकर अनेक काम करता है। यह चिकनाई को ग्लिसरीन में परिवर्तित कर देता है, जिसे आसानी से पचा लेता है। यह खाद्य पदार्थों को छोटी आंतों में सड़ने नहीं देता। खाद्य रस आंत यकृत में जाकर रासायनिक प्रक्रिया से ही शरीर के गठन के उपयोगी हो पाते हैं। यकृत भी चौबीस घंटे काम करता है, उसे बिल्कुल आराम नहीं मिलता। इसलिए यह शरीर का बहुत उपयोगी यंत्र है। हमारी थोड़ी-सी लापरवाही के कारण अधिक अम्लीय भोजन लेने तथा तली भुनी वस्तुएं अधिक खाने से लिवर में खराबी आ जाती है। जिससे सूजन हो जाती है, ग्रंथि का आकार बड़ा हो जाता है और वहां दर्द रहने लग जाता है। इसे ही ‘यकृत प्रदाह’ कहा जाता है। ज्वर रहना, भूख न लगना, कब्ज रहना, नींद न आना आदि इसके लक्षण हैं।
शरीर को आराम देना, रक्त को शुद्ध करना तथा मन को शांत करना इस रोग का उपचार है। औषधियों से इस रोग का उपचार नहीं हो सकता। इसलिए जो उपचार तथा आहार-व्यवस्था बताई गई है, उसे धैर्यपूर्वक चलाकर इस रोग को ठीक किया जा सकता है। रोग तो शरीर की शक्ति से ठीक होते हैं। इसलिए शरीर को शुद्ध व शिथिलकर, मन को शांत कर, शरीर की शक्ति को बढ़ाकर, हम हर प्रकार के रोग ठीक कर सकते हैं।

उपचार:

एक सप्ताह लगातार हल्के गर्म (बिना नमक के) पानी का कुंजल करें। बाद में सप्ताह में दो बार ऐसा ही करें। प्रतिदिन जल तथा सूत्र नेति करें, ताकि नाक पूरी तरह खुल जाए और ऑक्सीजन से रक्त की शुद्धि हो ।
पेट पर दाईं ओर गर्म सेंक 5-7 मिनट देकर 40 मिनट तक मिट्टी की पट्टी दिन में दो बार लगाएं। यदि मिट्टी उपलब्ध न हो, तो आधे घंटे तक फ्रीज के पानी की पट्टी रखें, उसे हर 5 मिनट के बाद ठंडा करें। सर्दियों में ठंडी पट्टी पर गर्म कपड़ा रखें।
आधे घंटे तक धूप-स्नान देने के बाद स्नान करवाएं। धूप में लेटते हुए सिर को छांव में रखें।
आधे घंटे के लिए योग-निद्रा का अभ्यास करें। यह बिस्तर पर लेटे-लेटे ही करें।
वाष्प-स्नान (Steam bath) इस रोग में विशेष लाभ देता है। 10 मिनट का वाष्प-स्नान; यदि यह व्यवस्था न हो, तो 15 मिनट तक गर्म पांव का स्नान देकर तुरंत स्नान करें या सिर को धोकर शरीर को स्पंज कर दें। यदि पूरा स्नान न लिया जा सके, तो दिन में दो बार सिर को धोकर स्पंज करें।

यदि बुखार हो, तो योगासन न करके केवल प्राणायाम करें। शीतली, भ्रामरी, नाड़ी शोधन तथा अग्निसार का लगातार अभ्यास करना चाहिए। जब शरीर में थोड़ी ताकत आए, तो कमर चक्रासन, जानुशिरासन, योग-मुद्रा, अर्धमत्स्येंद्रासन, वज्रासन, उष्ट्रासन, हस्तपादोत्तानासन, मकरासन का अभ्यास करें। थोड़ी और शक्ति आ जाने पर पश्चिमोत्तानासन, हलासन तथा सर्वांगासन को जोड़ सकते हैं। बाद में 5 मिनट का शवासन करें।

आहार:

तीन दिन केवल नीबू के रस के साथ अधिक-से-अधिक पानी का प्रयोग करें, ताकि खुलकर पेशाब आए। उसके बाद तीन दिन गन्ने का रस तथा नीबू पानी, बाद में एक साह संतरा, मौसमी, तरबूज, गाजर, पेठा, खीरे आदि का जूस मधु मिलाकर लें। एक सप्ताह छेने का पानी मधु मिलाकर या क्रीम निकला दूध-मधु डालकर, सब्जी का सूप, चने का सूप, रसदार मीठे फल, पपीता, खरबूजा, तरबूज आदि लें। एक समय में एक ही चीज लेनी है। फिर दूसरी चीज, जो मौसम के अनुसार सुविधापूर्वक मिल जाए, तो डेढ़-दो घंटे बाद लें। जब कुछ आराम मिले, तो सुबह नाश्ते में दूध-दलिया या सूजी की खीर लें। दोपहर में 1-2 चपाती, सलाद, उबली बिना घी की सब्जी, दही का रायता या दही का मट्ठा लें। बाकी समय सब्जी के रस, सब्जी का सूप व फल ही लें।

नींबू-शहद का पानी, पेठा, कच्ची गाजर, लौकी, खीरे का जूस, किशमिश भिगोकर और पपीता इस रोग का विशेष आहार है।

सुझाव:

इस रोग में अधिक परिश्रम करने से बचना चाहिए। जब तक रोगी रसाहार पर रहे, पूरा आराम करे। जब शरीर में ताकत आए, तब वह थोड़ा-बहुत काम करे। इस रोग में धैर्य से काम लेना चाहिए, क्योंकि यह रोग धीरे-धीरे ही ठीक होता है।


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