गठिया (Gout)

गठिया रोग जोड़ों में गांठें पड़ जाने, जुड़ जाने और दबाने से न सहा जाने वाला दर्द होने का नाम है। इसमें हाथ की उंगलियों, कलाई, पांव का टखना, घुटना आदि टेढ़े हो जाते हैं। यह रोग शुरू-शुरू में पांव के टखने, एड़ी तथा तलवे पर आक्रमण करता है। यह आक्रमण प्रायः रात के अंतिम पहर में होता है। इसका दर्द पांव के टखने से या एड़ी से शुरू होता है। अन्य जोड़ गर्म हो जाते हैं, लाल हो जाते हैं और सूज जाते हैं। रोगी के शरीर का ताप बढ़ जाता है। प्राय: ही कंपकंपी लेकर बुखार शुरू होता है। दिन में दर्द तथा सूजन प्रायः कम हो जाती है, किंतु शाम के बाद पुनः ज्वर तथा दर्द हो जाते हैं। तीव्र अवस्था में जिह्वा लेपावृत, अधिक प्यास लगना, गंदला तथा लाल पेशाब, कबज, सिरदर्द, मानसिक तनाव,अस्थिरता अदि लक्षण प्रकाश में आते है। इस रोग के बने रहने से ह्रदय, लिवर, गुर्दे अदि के ख़राब होने का अंदेशा रहता है।
रक्त में यूरिक एसिड की वृद्धि और उसी के शरीर के विभिन्न जोड़ों में एकत्र हो जाने से यह रोग होता है। हमारे शरीर में सदा ही यूरिक एसिड उत्पन्न होता रहता है। प्रोटीनयुक्त पदार्थ खाने से यूरिक एसिड बनता है। जब शरीर की दोषयुक्त अवस्था के कारण यूरिक एसिड शोषित होकर शरीर से बाहर नहीं निकल पाता, तभी यह गठिया रोग होता है।
उपचार:
धूप में लाल बोतल के तेल की मालिश करने, मुक्के से ठोकने, थपकी लगाने, जोड़ों के चारों तरफ हल्की मालिश तथा जोड़ों का लगातार व्यायाम करने से इसमें विशेष लाभ मिलता है।
जोड़ों पर गर्म पानी में नमक डालकर तौलिया भिगोकर 5 मिनट गर्म और एक मिनट ठंडे बर्फ के पानी से सेंक देने से भी लाभ मिलता है। बाकी जो उपचार तथा आहार व्यवस्था जोड़ों के दर्द रोग में बताए गए हैं, उन्हें अपनी सुविधानुसार करें। भोजन के परहेज का तो सख्ती से पालन करें। आहार में कैल्सियम तथा फासफोरस प्रधान पदार्थ लेने चाहिए। साथ-साथ विटामिन ‘ए’ तथा ‘डी’ का भी ध्यान करना चाहिए।
जिनसे यूरिक एसिड बनता हो, वे चीजें भी नहीं खानी चाहिए। इस प्रकार के मांस, मसूर की दाल, पालक, सेम की फली, खट्टे-मीठे अचार, चटनी, इमली, तला-भुना भोजन, बासी खाना आदि से परहेज करना चाहिए।
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