सर्वाइकल (Cervical)

सर्वाइकल: कारण, उपचार व आहार || Cervical: Causes & Treatment

रीढ़ की हड्डी में गर्दन का वह भाग जिसमें सात मोहरें होती हैं, ग्रीवा या सर्वाइकल कहते हैं। यह मेरुदंड का ऐसा भाग है, जो दाएं-बाएं और ऊपर-नीचे घूम सकता है। यहां की मांसपेशियां व सौत्रिक तंतु इस भाग के मोहरों को चारों तरफ घुमाने में सहायता करते हैं। इन सौत्रिक तंतुओं के टूट जाने तथा मांसपेशियों के दुर्बल हो जाने से रीढ़ की इन मोहरों में थोड़ा अंतर आ जाता है या अपने स्थान से थोड़ा हट जाते हैं, जिससे यह दर्द रहने लगता है। इससे बाजू, कंधे तथा छाती के बाईं या दाईं तरफ भी पीड़ा रहती है। नाड़ी-संस्थान तथा रक्तवाहिनी नलियों के कार्य में भी व्यवधान पड़ता है।

सर्वाइकल की बीमारी आजकल अधिकांश लोगों को होने लग गई है। जो व्यक्ति सैर व व्यायाम नहीं करते और ऐशो-आराम का जीवन व्यतीत करते हैं, रबड़ के मोटे-मोटे गद्दों पर सोते हैं और सिर के नीचे ऊंचे-ऊंचे सिरहाने रखते हैं, उन्हें ही यह बीमारी होती है। अन्य रोगों के कारण शरीर में कमजोरी आने तथा मांसपेशियों के शिथिल हो जाने से, किसी दुर्घटना में गर्दन को झटका लग जाने से यह रोग हो जाता है।

उपचार:

कुछ विशेष योगासनों के लगातार अभ्यास करने से तथा सख्त बिस्तर पर सोने से इस रोग से राहत पाई जा सकती है। कोणासन, उष्ट्रासन, सुप्तवज्रासन, भुजंगासन, ताड़ासन, हस्तपादोत्तानासन, मकरासन तथा मत्स्यासन का नियमित अभ्यास करें।

ताड़ासन: पीठ पर लेट कर हाथों को सिर से ऊपर करें फिर हाथों को ऊपर की ओर पांवों को नीचे की ओर श्वास भरकर पूरी शक्ति से तानें तथा ढीला करें, इसे 4-5 बार करें।

गर्दन तथा पीठ के ऊपर के भाग पर 4 मिनट गर्म और एक मिनट ठंडा सेंक 5 बार करके पीठ तथा गर्दन की जैतून के तेल (Olive oil) से हल्की मालिश करें, ताकि तंतु तथा मांसपेशियां सबल हों।

गर्म पांव का स्नान परेशानी तथा दर्द से राहत दिलाता है।

इसमें आगे झुकने वाले आसन तथा ऐसा ही कोई अन्य काम नहीं करना चाहिए।

रात में पतला सिरहाना लेकर सोना चाहिए। लेटे-लेटे ताड़ासन दिन में तीन-चार बार करना इसका उपचार है। अक्सर इस रोग में परेशानी से कब्ज हो जाती है। इसलिए पेट को साफ रखना चाहिए।

आहार:

वायु पैदा करने वाली वस्तुओं से परहेज करना चाहिए। हल्का सुपाच्य भोजन करना चाहिए। फलों के रस तथा फल अधिक लेने चाहिए, ताकि पाचन क्रिया अच्छी तरह हो ।