श्वास प्रश्वास संस्थान (Respiratory System)

श्वसन तंत्र को मज़बूत बनाना है, तो आज ही आजमाए ये 7 टिप्स।

शरीर में कई संस्थान काम करते हैं, जिनमें एक श्वास-प्रश्वास संस्थान भी हैं। यह रक्त को शुद्ध करने का एक यंत्र है। एक दिन में हृदय 8,000 लिटर रक्त का संचालन पूरे शरीर में करता है और उतना ही रक्त पूरे शरीर का विकार लेकर वापस हृदय में आता है। हृदय इसे फेफड़ों में शुद्ध होने के लिए भेजता है, जिसे यह श्वास-प्रश्वास संस्थान शुद्ध कर वापस हृदय के पास भेज देता है। 15 सेकंड का चक्र जीवनपर्यंत बिना रुके चलता रहता है। फेफड़ों के खराब होने से बहुत-से रोग, जैसे नजला, जुकाम, खांसी, निमोनिया, दमा, ब्रोंकाइटिस, प्लुरसी, तपेदिक इत्यादि, जो जानलेवा रोग भी हैं, हो जाते हैं।

रचना:

नासिका के छिद्रों से लेकर फेफड़ों तक (जो हमारी छाती में पसलियों के नीचे हैं) वायु के आने-जाने का जो मार्ग है, उसे श्वास मार्ग कहते हैं। श्वास मार्ग के पांच भाग हैं:
1. नासिका
2. कंठ
3. स्वर-यंत्र
4. टेंटुआ या श्वसनी
5. वायु प्रणाली

हम श्वास को नासिका के रास्ते से लेते हैं। नासिका में लगे यंत्र श्वास को गर्म करते हैं, छानते हैं और फिर श्वास फेफड़ों में पहुंचता है। फेफड़ा दो होते हैं, जो हृदय की दाईं और बाईं ओर हैं। ये स्पंज की तरह होते हैं। अनुमान है कि इनमें 16 से 18 करोड़ छिद्र होते हैं। इन्हीं छिद्रों में हृदय से रक्त आकर भरता है। ऑक्सीजन वायु प्रणाली द्वारा इन्हीं छिद्रों में से आती है, जो रक्त के दूषित तत्त्वों को जलाती है रक्त को शुद्ध करती है और विकार को कार्बन डाइऑक्साइड गैस के रूप में प्रश्वास द्वारा नाक के मार्ग से ही बाहर कर देती है। फेफड़े केवल ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं। प्रश्वास द्वारा शरीर से ये तीन पदार्थ बाहर निकलते हैं:
1. कार्बन डाइऑक्साइड
2. उड़नशील हानिकारक पदार्थ
3. जलीय वाष्प
स्वस्थ व्यक्ति एक मिनट में 16 से 20 बार श्वास लेता है। बचपन में यह संख्या अधिक होती है। नवजात शिशु में 44-45 और पांच वर्ष की आयु में 25-26 होती है। शारीरिक परिश्रम एवं व्यायाम, भागने, दौड़ने, खेलने, कूदने में श्वास की गति तेज हो जाती है। खड़े रहने में लेटे रहने की अपेक्षा और दिन में रात की अपेक्षा श्वास जल्दी-जल्दी आते हैं। रोगों में भी श्वास की गति बढ़ जाती है।

फेफड़ाों द्वारा रक्त की शुद्धि:

हमारे शरीर में सेलों के टूटने-फूटने और भांति-भांति की रासायनिक क्रियाएं होने से कार्बन डाइऑक्साइड नामक गैस बनती है। यह गैस जहरीली होती है। जिस रक्त में यह अधिक मात्रा में होती है, उसका रंग स्याही मायल लिये होता है। यह दूषित रक्त शरीर के सभी भागों से इकट्ठा होकर दो महाशिराओं द्वारा हृदय के दाएं ग्राहक कोष्ठ में पहुंचता है। हृदय से फुफुसिय धमनी द्वारा यह रक्त दोनों फेफड़ों में जाता है और उन कोशिकाओं में पहुंचता है, जो वायु कोष्ठों की दीवारों में रहती है। यहां इस रक्त में से बहुत-सी कार्बन डाइऑक्साइड गैस बाहर निकलती है और उसकी जगह ऑक्सीजन आ जाती है। फेफड़ाों से हृदय के बाएं ग्राहक कोष्ठ में जो रक्त जाता है, वह शुद्ध होता है, उसका रंग लाल होता है। उसमें ऑक्सीजन अधिक और कार्बन डाइऑक्साइड कम होती है।

फेफड़ाों में केवल इन गैसों की ही अदला-बदली नहीं होती, बल्कि कुछ जल भी वाष्प रूप में वायु के द्वारा शरीर से बाहर निकलता है। वाष्प के अतिरिक्त कुछ उड़नशील विषैले पदार्थ भी वायु द्वारा बाहर निकल जाते हैं। श्वास-प्रश्वास यंत्र को चौबीस घंटे काम करना पड़ता है। इसलिए उसे स्वस्थ रखना बहुत आवश्यक है। हमारी पाचन क्रिया से भी इसका गहरा संबंध है। पचाए हुए भोजन से बने इस रक्त की ऑक्सीजन से जब तक पक्वीकरण की प्रक्रिया न हो जाए, तब तक वह शरीर को शक्ति नहीं देता। इसलिए इस पर हमें विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

इसे स्वस्थ कैसे रखें:

नासिका में दो छिद्र हैं- पहला बायां, जिसे इड़ा (चंद्र नाड़ी) और दूसरा दायां, जिसे पिंगला (सूर्य नाड़ी) कहते हैं। पहला ठंडक और दूसरा गर्मी देता है। शरीर के तापमान का संतुलन बनाए रखने के लिए यदि गर्मी की आवश्यकता होती है, तो दायां स्वर चलता है। यदि ठंडक की जरूरत होती है, तो बायां स्वर चलता है। यह तभी हो सकता है, जब दोनों नासिकाएं खुली रहें।

  1. इन्हें खुला रखने के लिए सूत्र नेति तथा जल नेति का अभ्यास प्रतिदिन करना बहुत लाभप्रद रहता है। यह बड़ा सरल उपाय है।
  2. सप्ताह में एक या दो बार कुंजल-क्रिया करनी चाहिए। इससे खुराक की नली, आमाशय तथा वायु प्रणाली शुद्ध हो जाती है और जमा हुआ कफ तथा पित्त बाहर आ जाता है।
  3. लंबे गहरे श्वास लेने और छोड़ने की आदत डालनी चाहिए। इसके लिए सुबह खुले पार्क में जाकर अभ्यास करें। मुंह बंद करके पार्क में हल्की दौड़ लगाएं, ताकि जल्दी-जल्दी नाक के रास्ते श्वास आए जाए।
  4. प्राणायाम का अभ्यास करें।
    (a) कपालभाति प्राणायाम: आसन बिछाकर पद्मासन या सुखासन में बैठें। केवल झटके से श्वास को बाहर फेंकें, श्वास लेने का कोई प्रयास न करें। स्वतः ही जो श्वास आए, उसे आने दें। आप सिर्फ श्वास को झटके से बाहर फेंकें। ध्यान रखें कि जब आप श्वास बाहर फेंकें, तब उसका झटका पेट से लगे, पेट अंदर की ओर पिचके । इसे 25-50 बार करें। एक मिनट में 120 बार तक इसका अभ्यास बढ़ा सकते हैं।
    (b) नाड़ी शोधन प्राणायाम : दोनों नासिकाओं से पूरा श्वास भरें और उसे अंदर रोक लें, कुंभक करें। अपनी शक्ति तथा सुविधा के अनुसार ही श्वास को रोकना है और रोकने का अभ्यास बढ़ाना है। फिर धीरे-धीरे अधिक समय लगाकर पूरा श्वास बाहर निकालें। श्वास रोकने से ऑक्सीजन फेफड़ों के आखिरी छिद्रों तक जाएगी और रक्त को शुद्ध करेगी।
  5.  रात में उसी स्थान पर सोएं, जहां ताजी खुली हवा आती हो। सोते समय श्वास नासिका से ही चलना चाहिए। मुख ढककर नहीं सोएं। चादर या कंबल केवल गर्दन तक ही रखें।
  6. यदि नजला या जुकाम रहता हो और नाक अक्सर बंद रहती हो, तो दिन में एक या दो बार नाक से भाप लें। सफेदे (Eucliptus) के पेड़ के 8-10 पत्ते पानी में उबाल लें। आंखों पर ठंडे पानी की पट्टी रखकर ऊपर कपड़ा ओढ़कर 5-7 मिनट भाप लें। श्वास नाक से खींचें और मुंह से बाहर निकालें। इससे नाक खुली रहेगी और श्वास के हर रोग में लाभ होगा।
  7. भस्त्रिका प्राणायाम के व्यायाम: यदि नजला-जुकाम बिगड़ा हुआ तथा पुराना हो, तो भस्त्रिका प्राणायाम के साथ यह व्यायाम करें। तुरंत लाभ मिलेगा। लयबद्ध तरीके से पूरी शक्ति से श्वास को अंदर लेना और पूरी शक्ति से श्वास को बाहर निकालना है। ऐसा पहले धीरे-धीरे, फिर जल्दी-जल्दी करना चाहिए, परंतु ध्यान रखें कि लय नहीं टूटे। इसे भस्त्रिका प्राणायाम कहते हैं।
    (a) अपनी गर्दन को दाएं-बाएं व नीचे-ऊपर करते हुए भस्त्रिका प्राणायाम करना। फिर गर्दन को गोलाकार में दाएं-बाएं और बाएं-दाएँ घुमाते हए भस्त्रिका करना है।
    (b) अपने पांव को खोलकर खड़े हों, बाजुओं को ढीला छोड़ें। अब स्वयं दाएं-बाएं पूरा घुमाते हुए भस्त्रिका करें, जिससे दोनों फेफड़े खुलेंगे। पहले व्यायाम में गर्दन को घुमाने से दोनों नासिकाएं खुलती हैं।
    (c) अब बाजुओं को सामने से ऊपर उठाएं और श्वास भरें, फिर पीछे से घुमाते हुए नीचे लाएं। श्वास को झटके से बाहर निकालें। इस प्रकार बाजुओं को घुमाते हुए भस्त्रिका करें। ऐसा करने से आप अधिक ऑक्सीजन लेंगे और अधिक कार्बन फेफड़ों से बाहर निकालेंगे।

इसके साथ प्रतिदिन या एक दिन छोड़कर थोड़ा घी या सरसों का तेल गर्म करके रूई से या ड्रापर से दोनों नासिका में डालकर श्वास से अंदर खींच लें, ताकि गले तक श्वास नली तर हो जाए।

श्वास प्रश्वास यंत्र को शुद्ध रखने के लिए निम्नलिखित वस्तुओं की चाय बनाकर पिएं इलायची (छोटी)-1, पिपली (मग) 1/4, काली मिर्च 3-4, तुलसी के पत्ते-7-8, अदरक व मुलठी थोड़ी-थोड़ी। इन्हें पानी में अच्छी तरह उबालें। उतना ही दूध तथा शक्कर डालकर दिन में दो बार पिएं। इस से कफ नहीं बनेगा। इसके साथ-साथ भोजन में वैसी चीजों का परहेज, जो कफ तथा वायु पैदा करने वाली हो, का त्याग करना और हल्का सुपाच्य भोजन लेना श्वास प्रश्वास यंत्रों को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक है।